कविता
इज्जत कर्छुन मोरङ्गिया सुनसरिया के,
मान सम्मान कर कन्जान थारु समाज के,
दान दहेज मत मांङ्ग थारु खवास के संस्कार बचा,
इना बिकृती सवके थारुखवास समाजसे आव हटा,
इना छेकी आपने सियान के जोडी जमावे बला
बिहादान आर सिनुरदान के प्रथा दुई झनाके सान,
मतर क्याम छौरासव माङ्ग्छी माङ्गिके लेछै दजेजमे मोटरसाइकल आर अनकर जगा जमिन सव दान,
सवहै घरमे दय गुदि बहिन छि मतर कखरु धन सम्पती छि त कखरु हाथमे फुटीकडी नहि छि,
थारु खवास समाजमे कोइकोइ गरिबीके आर्थिक स्रोत कमहावेके कारणसे समाजमे बिकृती आन्छी ।
मनमेमन मिल्याके गोटे समाजके आगु कर्छी बिहादान
तयोनि पुग्छु थारु खवास सवके दानपुनसे अघान
घरके गार्जियन के भार थमे परछे दानदजेज जे जुर्छी देवे करछे मतर माङ्ग करलासे ऋणमे पर्छे जान,
बिहादान सिनुरदान छेकी कन्यादान उपरसे कुन के माङ
जे जुर्तु देव्व कर्तु मतर आव मांङ्गी मांङ्गी के दहेज मत मांङ्ग ,
( लेखक:= थारु युवा साहित्यकार सुरेश चौधरी )
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